________________
प्रवचनसार कर्णिका
नरक के जीवों को खूब भूख लगती है, परन्तु खाने .. को नहीं मिलता है। प्यास सी लगती है परन्तु पीने को पानी भी नहीं मिलता है। नरकगति की भयंकर वेदना के वर्णन को सुनकर भव्य आत्मा पापोंसे बचे इसी लिये वीतराग प्रभुने नरकों का वर्णन समझा करके अपने ऊपर महान उपकार किया है।
पाप करना ही नहीं चाहिये। फिर भी अगर करना ही पड़े तो तल्लीन होकर दिल लगाकर नहीं करना चाहिये। परन्तु उदासीन भावसे करना चाहिये। सम्यग्दृष्टि आत्मा . जहांतक हो सकता है वहां तक पाप करता ही नहीं है। और अगर करना ही पड़े तो कंपते कंपते, डरते डरते करता है। जो श्रावक तत्त्व को जानता है वह वात करता है तो-धर्म तत्त्व की ही चर्चा करता है ! पाप की चर्चा कभी नहीं करता है। एसे श्रावक और श्राविका माता पिता अपने पुत्र-पुत्रियों के शादी-विवाह भी धर्मी, धर्मात्मा गृहस्थ के यहां ही करते हैं । जिस से धर्म के संस्कार पुष्ट होते जायें। इसीलिय ही सम्यक्त्वी आत्मा शादी विवाह जैसे कामों में सबसे पहली पसन्दगी धर्मात्मा की . ही करता है नहीं कि पैसादार की। - संसार में अच्छा मिलना तो पुण्य के अनुसार होता
है। जिसके रोमरोम में वीतराग प्रभु का धर्म रहता है “एले धर्मात्मा की अगर यार्थिफ हालत अच्छी भी न हो फिर भी वह रोता नहीं है। चिन्ता नहीं करता है। परन्तु जो मिलता है और जो होता है उसी में सन्तोष मानता है।
समकित के पांच लक्षण हैं—(१) शम-समता (२)