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________________ बोधक सुवाक्य । ४४१ - - - (४०) लड़का-लड़की स्त्री आदि कुम्वं परिवार को बन्धन ... रूप माने उसका नाम है सभ्यग्दृष्टि ।। (४१) जिनेश्वर के वचनं ऊपर जिसे अडिग श्रद्धा हो . उसका नाम सभ्यंग्दृष्टि । (४२) संसार की किसी भी क्रिया में आनन्द न हों उसका नाम है समकित्ती । (४३) भव से डरे उसका नाम है सम्यग्दृष्टि । (४४) संसार में रहके भी उदासीनं भावसे जो संसार में - रहे उसका नाम है सम्यष्टि । .. (४५) संसार के पदार्थों की लालसा नहीं उसका नाम है समकित्ती। (४६) आत्मा की चिन्ता में जो मशगूल रहे उसका नाम है आत्मानन्दी। ... (४७) संसार की प्रवृत्तियां प्रेम से करे और पाप का भय न हो उसका नाम भवाभिनंदी। (४८) धर्म विना का सुख इच्छा करने लायक नहीं है । क्योंकि धर्म बुद्धि खिले विना ये सुख आत्मा को अधो गति में ले जायगा। (४९) भौतिक सावनी के ऊपर प्रेम न हो तो मानना कि धर्म हृदय में वसा है। (५०) किसी की योग्य मांग को शक्ति होने पर भी ना कहते हुये संकोच होना ये भी दाक्षिण्यता है। (५१) आत्म कल्याण के लिए जीवन की प्रत्येक क्षण पवित्र रखनी पड़ेगी। और ये पवित्र रखने के लिए विषय विकारों से बचना पड़ेगा। (५२) विकारों के शमन से आत्म शुद्धि होगी। और आत्म शुद्धि होगी तो परमात्म दर्शन होंगे ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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