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________________ - . जीवनदर्शक-गीत .. संवत दो हजार पांचकी महा सुदीकी पंचमीथी .. लम्बाचौड़ा मंडपथा । और प्रभूसूर्ति पधराई थी ।।... ठाठ पाठसे गुरु विराजे. पदवी शिष्यको देनेको .. प्रीय शिष्यको वो पदवी दी। . . . . जिसके आगे कोई पदवी नहीं। - पूज्य गुरुदेव ॥११॥ तवसे ही ये नाम पड़ा है । पूज्य गुरुवर भुवनसूरि प्रभावनायें खूब वंटी थी . गाई कीर्ति नगर नगर ॥ 'गुरु शिष्यने प्रवचन देकर . ... जनताको है मुग्ध किया । आकाश गूंजता जय जय से शासनका वो डंका बजा ॥ : पूज्य गुरुदेव ॥१२॥ त्यागी तपस्वी उन्ना विहारी .' एसे गुरुवर भुवनसूरि आरामके हैं मधु व्याख्यानी - शान्त गुरुकी है . मूर्ति ..... जन जनके हैं वो उद्धारक .. स्फूर्तिकी एक चिनगारी । तारे हैं लाखो नर - नारी .......... .....दावानलकी अग्नि से ॥ पूज्य गुरुदेव ॥१३॥
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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