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________________ કચ્છ फिर आये गुरू कच्छ देश में राम भुवन हैं आप पधारे एक प्रतिष्ठा मनवाने । राम गुरू ने तब है सोचा फिर उस सेरडी नगरी में ॥ स्वागत स्तम्भ परमेष्ठी के तीसरे पद में पदवी एक भुवन को देना सजाये हैं रस्ते चोर्ड लगाये जगह जगह पर स्थापित भुवन को करे ॥ पूज्य गुरूदेव ||८|| प्रवचनसार कणिका रस्ते नगरी के मंडप वहु बनवाये हैं || लाखों नर नारी तव आये देश के कौने कौने से ॥ घर घर के मंगल गीतों से गलियाँ भी वो गूंज उठी ॥ पधारे थें तवं संगीतकार आठ दिनोंका उत्सव था तव, अगनित थे तव साधु साध्वियाँ पूज्य गुरूदेव ||९|| नाटय मंडली आई थी झूम झूम जनता गाई ॥ अविजन आये तब प्लेनोंसे कासेंकी बड़ा अनेस मेला था । क कतार खडी ॥ पूज्य गुरुदेव ॥१०॥
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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