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________________ ४२८ प्रवचनसार कर्णिकाः - - - - - - (१८) तास प्रथमछे पट्टधर प्यारा रामचन्द्र सूरिराज अहिंसानो झण्डो लईने फरकावे जगमाय । फरकावे जगमांय । जिनवर० (१९) वाद विवादो घणां करीने विजयनें वरनार तास प्रसावक पट्टधर प्यारा शान्त सूर्ति मनोहार शान्त मूर्ति मनोहार । जिनवर० • (२०) प्रभु मावीरनी पाटे आव्या सत्यो तरमी पाटे. अमृत सरखी वाणी सुणावी चोधेधरने नार वोधेनरने नार । जिनवर० • (२१) व्याख्यान आपे अमृत सरखं गजव पड़े प्रभाव दुनियामां छे दीपक सूरिजी शासनना हितकार शासनना हितकार । जिनवर० • (२२) गुरूजी विनति एक स्वीकारो आपो भवोभव लेव ! साचा गुरूनी आशीष लईने पामू भवजल पार। पासू भवजल पार । जिनवर० . (२३) साचा जोगी साचा सूरिजी ब्रह्मचारी कहेवाय । करूणा नजरे दासने देखी उगारो सूरिराज । उगारो लूरिराज । जिनवर० . (२४) वे हजारने सत्तर साले महामास सुखदाय . . . सुद एकमना सादडी नगरे रचनाकरी मनोहार । रचना करी मनोहार । जिनवर० (२५) जिनचन्द्र विजयनी रचना सुन्दर गावे नरने नार ! गातां गातां हर्ष वधे छे थाय आत्म उद्धार । थाये आत्म उद्धार । जिनवर
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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