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________________ व्याख्यान-इकतीसा . ३९९ विनय नाम के पुत्र हैं। शुभध्यान नाम का सेनापति है। सदगुण स्वरूप सैनिक हैं और करुणा नाम की पुत्री है। एले मुनि ही इस संसार में सुखी हैं। - मोहराजा के अविरति नाम की रानी है। हिंसा नाम की पुत्री है। मिथ्यात्व नाम का पुत्र है। दुनि नाम का दंडनायक है। . भगवान श्री महावीर परमात्मा से श्री गौतम गणधर • पूछते हैं कि हे भगवन् ! धर्म किस में आता है ? . भगवानने कहा कि है. गौतम ! जिसे इन्द्रिय जय की भावना हो, मोक्ष की अभिलाया हो, और संसार के प्रति अरुचि हो उसके जीवन में धर्म आता है। .. तीर्थकर परमात्माओं की कोई भी देशना निष्फल नहीं जाती है। भगवान श्री महावीर देव की प्रथम देशना निप्फल गई वह आश्चर्य गिना जाता है। - उत्सपिनी और अवसर्पिणी स्वरूप काल भरत और एरावत क्षेत्र में ही होते हैं। महाविदेह में नहीं होते हैं। .. वहां तो हमेशा चौथा आरा ही वर्तता है। महाविदेह से हमेशा के लिये मोक्षमार्ग खुला है। . . . समकितावस्था में परभव का आयुष्य वांधनेवाला . मनुष्य नियम से वैमानिक देव काही आयुष्य बांधता है। पृथ्वी पर विचरते तीर्थयारों का अस्तित्व उत्कृष्ट से १७० (१७.) का होता है। : पांच मरतक्षेत्र में, एकएक एले पांच, ऐरावत क्षेत्र में एक एक ऐसे पांच, और पांच महाधिदेह की १६० विजय में एक एक हो तो १६० एले कुल १७० तीर्थकर विचरते हो सकते हैं। . . , ...:.:...:...:.:...: .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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