SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याख्यान-तीसवाँ । . भी हाथ में नहीं ली उस कारीगर से राजा कहने लगा कि तुमने तुम्हारा काम पूरा कर दिया फिर भी तुम एसा क्यों कहते हो कि अभी पीछी भी हाथ में नहीं ली। - उसने कहा महाराज ! मैंने जो वात कही थी वह सच है। देखो! .. . . इस प्रमाण कहके कारीगरने चित्रशाला के मध्यभाग में जो परदा था वह डाल दिया। • बीच में परदा थाजाने ले चित्रशाला के ये अडधे भाग की भीत कोरी कट (चित्र विना) दिखाई दी। राजानें पूछा एला क्यों चित्रकारने कहा कि चित्र चितरी हुई दीवाल में ले इस साफ की हुई भीत में उस चित्र का प्रतिविस्व गिरता था। वीचमें परदा गिरा इस लिये प्रतिविम्ब गिरना वन्द हो गया। दीवाल को पहले स्वच्छ करना चाहिये। और फिर चित्रामन हो तो चित्र एकदम अच्छा उठे। इसी प्रकार जीवन शुद्धि के लिये व्यवहार शुद्धि की पहली भी आवश्यकता है। महापराक्रम के विना परमपद मिलनेवाला नहीं है। इस संसार में कर्म के सिवाय दूसरा कोई भी शत्रु नहीं है। कुमारपाल महाराजाने सात व्यसन के सात पुतले बनाये थे। उन सातों के काले मुंह करके गधे पर बैठाके पूरे शहर में फिराये। यह द्रश्य देखकर नगरवासीयों को एसा लगा कि अगर इन लात व्यसनों में ले अपन एक भी व्यसन का लेवन करेंगे तो अपनी श्री यह दशा होगी। ..इस लिये चेतते रहना। कुमारपाल का सात व्यसन पर कितनी वृणा थी वह तो देखा ?
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy