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च्याख्यान-छच्चीसवा
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लज्जित हो गये । सभीने क्षमा मांगी। परन्तु सुभद्रा को अव संसारमें रस नहीं लगा । दीक्षा लेके.सुभद्रा ने जीवन उज्जवल कर लिया। .
. .. भगवानके ऊपर भक्ति कय जगती है ? भगवानके ऊपर प्रेम जगे तब ? भगवानकी भक्ति क्यों करते हों ? आत्म कल्याण करने के लिये ? - द्रव्य भक्ति किये बिना भावयक्ति नहीं आ सकती है। . साधु मन वचन और कायाले धर्म करते हैं। तुम तो चारसे धर्म करते हो। चौथी लक्ष्मी ठीक है ना ?
धर्मके महोत्सव देखने तुम्हें आनन्द होता है ? कोई भी महोत्व करो तुकशान नहीं । किन्तु आनन्द तो सभीको होना चाहिये ।
उत्सव करना, कराना और करनेवाले को अच्छा मानना ये धर्मकी मूल (पाया) की निशानी है।
उपकारियों के उपकार को नित्य याद करना यह अपनी फर्ज है। भूतकाल की सक्तियों के जीवनको याद करो । मानवलोक में एसी भी सतियाँ थी कि जिनकी परीक्षा देव भी आकर कर गए । उसमें वे उत्तीर्ण हुई तभी उनका नाम शास्त्र में लिखा गया । .... ... महा सती मदनरेखा का जीवन वृत्तान्त जानते हो? मृत्युको प्राप्त हुए पतिदेव को आराधना कराके देवलोक में सेजती है । तुम्हें अगर एसा प्रसंग आवे तो तुम देव लोकमें भेजो या संसारमें ही रखडाओ ? . . ..महानुभाव ! शास्त्र में गाया जाय एसा बनना हो तो . गुणियल (गुणी) वनना होगा। गुणियल बने बिनाके नाम शास्त्रों में नहीं लिखे गए हैं।