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________________ - ३१०. प्रवचनसार कर्णिका में एक पक नामांकित मुद्रिका पहना दी। पुत्र का नाम रक्खा था कुबेरदत्त और पुत्री का नाम रक्खा था कुबेरदत्ता। - तैरती तैरती पेची दूसरे गाँव गई। सुबह के प्रहर में दो व्यवहारिया नदी में स्नान करने के लिये आये । पेटी को आती देखकर उसमें से जो निकले वह आधा आधा कहेच लेने की शर्त पक्की कर के पेटी वाहर निकाली। उनको धन सम्पत्ति की आशा थी किन्तु धन सम्पत्ति .. के बदले पेटी खोलने ले एक बालक गुगल उनको प्राप्त हुआ। इस से पुत्र की जरूरतवाला पुत्र ले गया और पुत्री की जरूरतवाला पुत्री ले गया । विधि की घटना कैसी विचित्र बनती है वह देखो। ये दोनो वालक युवावस्था में प्रवेशे । और पालक भाता पिता जानते हुये भी दोनों को पति पत्नी के सम्बन्ध ले जोड़ दिया। . अकस्मात् दोनो एक दिन सोगठावाजी खेल रहे थे। कुबेरदत्ता की सोनठी को जोरसे मारने ले कुबेरदत्त हाथकी अंगूठी इकदम उछल के कुबेरदत्ता की गोदः इकदम जाके उछल पड़ी। . अन्योन्य अंगूठी की जांच करनेले गाँव और आकार की समानता के हिसाब ले खुद आई-बहन होनेकी शंका होने लगी। - कुबेरदत्ता इकदम अपने पालक पिताके पाल पहुंच के हकीकत का खुलासा प्राप्त करने लगी। खुलासा सुनते ही उसके हृदय में पश्चात्ताप की अग्नि प्रगट हो गई.। अरे.। मैंने यह क्या किया ? भाईको ही
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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