SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - व्याख्यान-चौवीसवाँ ३०७ अच्छा नहीं लगता है, इसका कारण यह है कि हृदयमें संसार है। - जगत के अगर कोई उद्धारक हैं तो श्री अरिहंत परमात्मा हो हैं। अरिहंत का शासन मिलने पर भी अरिहंत की भक्तिरहित जीवन व्यतीत होता हों तो समझ लेना कि ये दुर्भाग्य की निशानी है। - जहां संसारका रस होता है वहां कपायका रस होता ही है इसलिये अगर कवाय को काबूमें रखना हो तो संसार के प्रति वैरागी बनो। . बुद्धिशाली मनुष्य भूल भी करे तो यह मेरी भूल है ऐसा समझे । जीवन में की गई भूलें जीवनको पायमाल करती हैं। नरक के जीव चौवीसों घण्टे चिल्लाते हैं दुःख सहते हैं यह तो तुम जानते ही हो? . परभवमें जिलने दान दिया हो वही दान दे सकता है। दान देते हुए दूसरों को रोकने से दानान्तराय कर्म संघता है। - नवकार का आराधक दुःखी होता नहीं है। लेकिन भाज है क्योंकि आराधक भाव हदयमें नहीं आया । . लालच और लोभले दिया गया दान एक वेश्या और भांडकी हकीकत जैज्ञा परिणमता है। - एक शावक के घरमें गुरु महाराज गोचरी बहोरने जाते हैं। गुरुमहाराज तपस्दी हैं। मास क्षमणके पारणामें मास क्षमण करते हैं। श्रावक के घरमें बादाम, पिस्ता. डालके लाडू बनाये । पदिनी श्राविका महाराज साहबको देखके प्रफुल्लित हो गई ।... .. .....
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy