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________________ व्याख्यान - चौवीसवाँ ३०५ वाह की पुकार करने लगे । लेकिन राजा कुछ भी नहीं वोला | और इनाम भी नहीं दिया । वहतो विचार करने लगाकि वार वार इस युवक को बांस के ऊपर चढ़ने देने से कभी तो नीचे गिरके मर जायगा । और मेरी इच्छा पूरी हो जायगी । इलाची आखिर में चौथी बार दोरडा (रस्ता) ऊपर चढ़ा | वांस बडे बडे खडे किये होने से ऊपर चढ़ने वाला पूरे नगर को अच्छी तरह से देख सकता था । वांस के दोरडा के ऊपर नाच करके राजा को प्रसन्न करने की इच्छा वाले इलाची ने वांस के दोरडा के ऊपर से एक धनिक गृहस्थ की हवेली में एक सुन्दर दृश्य देखा | 1 : एक नवोढा युवान स्त्री एक मुनिराज को मोदक लेने का आग्रह कर रही थी । मकान में सुनिराज और युवान स्त्री सिर्फ ये दोनों ही थे । नवोढा स्त्री की काया रूप के तेज से चमक रही थी । एसे एकान्त समय में भी सुनिराज की दृष्टि नीचे जमीन तरफ थी । यह दृश्य देखकर इलाची चमक उठा । अपने जीवन में जागृति आई | अहा ! कहां यें मुनिवर और कहां मैं ? एक नट कन्या के मोह में भान भुला हुआ तो मैंने घरवार छोड़ा माता पिता छोडे, वीतराग धर्म वासित कुटुम्व छोडा । मुझे धिक्कार है । धन्य है इन मुनिको । अपने से हुई भूल पर इलायची को पश्चाताप होने लगा | पश्चाताप की ज्वाला में अनादिकाल से घर २०
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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