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________________ च्याख्यान-तेईसा ... २९१ . मेरे सिर पर लेने को तैयार हूं। लेकिन उसके बदले में . तुझे मुझ को एक लाख सोनामुंहरें देनी पड़ेगी। : वेश्या तो खुश खुश हो गई । झट जाके एक लाख सोनामोहरों की थैली लाके शेठ को अर्पण करके कहने लगी कि आपका उपकार कभी नहीं भूलूं। .. शेठ भी सोनामोहर और मुड़दा लेके रवाना हो गये। - घर जाके शेठाणी से कहने लगे कि ये एक लाख सोने की मोहरें। सोने की मुहरें देखके शेठानी तो स्तब्ध ही रह गई । शेठने कहा कि यों पागल जैसी क्यों वन गई है ? यह थैली सम्हाल के पिटारे में रख दे। और तू सोजा । . . यह तो आकाश को थींगड़ा मारने की सिर्फ सूई ही लाया हूं । डोरा तो अब लेने जाता हूं। . एसा कहके शेठ तो फिर से मुडदा को कंधे पर डाल के रवाना हो गये । .. चलते चलते. बरावर एक मुल्ला की मस्जिद के पास आके खड़े हो गये। वहां देखा तो बड़े मुल्ला वरावर बीचोंबीच वैट के कुरान वांच रहे थे। आस पास तीनसौ-चारसौ मुल्लों का टोला बैठ के कुरान सुन रहा था। थोड़ी दूर एक म्युनिसिपालिटि का दिया का खम्भा शेठ ने देखा । खम्मा के ऊपर झांखा दिया जल रहा था। शेठ ने तो राजकुमार के मुडदा को खम्भा का टेका देकर चरावर खडा रक्खा । और फिर एक वड़ा पत्थर लेके ताक करके कुरान
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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