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________________ व्याख्यान - तेईसव . २७७ तो अमर ही रहा । अमरकुमार समताभावसे कालधर्म थाके (मरके) देवलोक में गये । मुनि हत्या करी पापणीप निज घर दौडी जाय । वाघण त्यां वच्चे मली एते फाडी खाय ॥ अमरकुमार को माता अमरकुमार की गरदन ऊपर छुरी फेर के मन में मलकाती हुई घर तरफ पीछे फिर रही थी । वहीं उसका पाप भरा गया। और तीन दिन भूखी वाघ फालमार के (कुक्के) नीचे पटकी उलको फाडके खा लिया। घोर पापकर्म उपार्ज के वह छडी नरक में गई । ढ प्रहारी तद्भव मोक्षगामी होने पर भी जीवन में महापाप किया था । उस समय का जगत उनको कहता था कि ये महा पापी है । लेकिन इसकी उसको परवाह नहीं थी । पुन्योदय जगा । किये पाप का पश्चाताप हुआ । दीक्षा लेके कल्याण साधा । लोग कुछ भी व उस पर ध्यान नहीं देना । अपनी आत्म शुद्धि की उपेक्षा नहीं करना । क्योंकि गाँव के सुख पर गणणा (गलना - पानी - गालने का वस्त्र) नहीं बांधा जा सकता है । एक सुनिवर के ऊपर एक स्त्रीने आरोप ( गुन्हा ) लगाया। तभी से वे मुनि झांझरिया मुनि तरीके प्रसिद्ध बनें । तप - जप और समता में लीन वने वे महात्मा अपने कर्म के दोष काढने लगे । अन्य के शेष के प्रति दृष्टिपात भी नहीं किया । दीक्षा लेनेके बाद एसा समझे कि अव 4
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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