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प्रवचनसार कर्णिकाः सकता था ? सत्ताके आगे शाणपण (होशियारी) नहीं .. चलता है।
सतत एक धारा अविच्छिन्नपने एकाग्रपले से अमर .. कुमार के द्वारा गिने गये नवकार मंत्र के प्रभाव ले जचर चमत्कार हो गया। हवन की ज्वालाओं में से एक सुवर्ण का सिंहासन प्रगट हुआ। और उसके ऊपर बैठा हुआ अमर कुमार दिखाई दिया।
ब्राह्यण ढल गये। राजा आसन ऊपर से उथल पड़ा । सव बेभान हो गये।
अमरकुमारने पानी मंत्र के सव पर छांटा । सव जागृत हुये । देवी प्रभाव देख के राजाले क्षमा मांगी ! . और राज्यपाट देने को विनती की । • " राज्य रुद्धि लघली ग्रहो
विनवे श्रेणिक राय । जान बचाव्यां सर्वना
सुजथी केम भुलाय ॥ अमर को राज्यपाट की कहां गरज थी। इसके पास तो मन्त्र रूपी चिन्तामणी आ गया था । स्वार्थी संसार के ऊपर उसे अणगमा (तिरस्कार) उत्पन्न हुआ। दीक्षा लेके घोर भयानक ओर एकान्त एसे स्थान में जाके आत्म-..' ध्यान घरने बैठ गये ।
उस तरफ उसकी माँको खबर हुई कि अमर जिन्दा है। इसलिये ये मधरात यानी आधीरात में छुरा लेके .. आई और इस गोझारी (हत्यारी) माताने बाल साधु की गरदन पर छुरी फेर दी। देह की मृत्यु हुई लेकिन आत्मा