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________________ २७० प्रवचनसार कणिका - - - से मांगे उसका नाम भिखारी । दे उसका भला न दे उसका भी भला पले विचार वाला जो हो वह साधु भिक्षुक को व्यवहार दृष्टि से देना चाहिये। भिखारी को अनुकम्पा बुद्धि से देना चाहिये। योर साधु को भक्ति की दृष्टि से देना चाहिये। सामायिक में संसार की बातें नहीं होना चाहिये । बातें करने वालेको सामायिक का दोष लगता है। धर्मको आराधना सत्वशाली कर सकता है । सत्व विनाका मनुष्य धर्म की आराधना नहीं कर सकता है। व्याधि-विरोधी और विराधक का कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिये व्याधि उदयमें कब आवेगी यह अपन को निश्चित नहीं है। बहुत धन होने पर भी दान देने का मन न हो तो उसका कारण दानान्तराय कर्म है। सीधे पांसे भी उलटे पडे उसका नाम लाभान्तराय । सामग्री होने पर भी सुख न भोग सके उसका नाम भोगान्तराय और उपभोगान्तराय । शक्ति होने पर भी धर्म क्रियामें प्रमाद करे उसका नाम वीर्यान्तराय । कच्चे पुन्यवालों को मिला हुआ सुख टिकता नहीं है। भाग्य में हो तभी सुख मिलता है। भाग्य में न हो तो सुख नहीं मिलता है। प्रेम नहीं करने लायक वस्तु ऊपर प्रेम हो तव समझ लेना कि राग मोहनीय सताती है। राग मोहनीय का प्रवल उदय हो तव संसार ऊपर राग होता है। संसार. दुःखमय है। इसलिये चेतके चलो। संसार में
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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