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________________ व्याख्यान-वाईसवाँ २६९. जिन तीर्थकर परमात्माओं ने तीर्थ की स्थापना करी उनने अपने जीवन में पूर्ण धर्म उतरा था । ...... जिसे अपनी आत्मा की चिन्ता नहीं है। वह विचारा.. - दूसरों की क्या दया खायगा? . . जिसका पुन्य तेज होता है। उसको जंगल में भी मंगल हो जाता है। और पुन्य जिसका खत्म हो गया हो उसे शहर भी जंगल समान बन जाता है। उप पुन्य और पाप का फल इस भव में ही मिल जाता है।.. - धर्म से आपत्ति जाय। दुश्मन मित्र बने। रोग जाय। शोक जाय । तमाम दुखों को दूर करने की ताकत धर्म में है। . : ... "नमो अरिहन्ताणं” इस एक पदको शिखाने वाले का भी उपकार मानना चाहिये। : ... . . पुन्यानुवन्धी पुन्य संसार में फंसाता नहीं है। और पापानुवन्धी पुन्य संसार में फंसाये बिना नहीं रहे । . मनको निर्मल बनाने के लिये धर्म क्रिया आवश्यक है। इस लिये मनको अशुद्धि में से बचाने के लिये धर्म: किया करना । । गर्भ में जैसा आत्मा हो वैसे विचार उस बालक की - माताको आते हैं। . . . .. जो गर्भ में बालक पुन्यशाली हो तो अच्छे विचार: आते हैं। और जो पुन्य हीन हो तो खराव विचार आते हैं। : . ... जव श्रेणिक महाराजा मिथ्यात्वी थे तव उनको शिकार का बहुत शौख था। एक समय शिकार करने को निकले : तव आयु का वन्ध होने से नरक में जाना पड़ा . - अदीन पने से मांगे उसका नाम भिक्षुक । दीन पने:
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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