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________________ २४२ - प्रवचनसार कर्णिका - आवती काल (कल) मैं तुझे राज्यसभा के समक्ष जनरल महासेनाधिपति तरीके नियुक्त करने वाला है। इतनी मेरी विनती माननी पड़ेगी। वंकचूल के लिए कारागृह में तमाम व्यवस्था कराके मालवपति विदा हुए और वहाँ से सीधे महारानी के खंडमें आए । अन्य रानियां भी बैठी थीं। प्रियतम को आया हुआ देखकर दूसरी रानियाँ चली गई। राजाने द्वार वन्द किया। रानी से पूछा कि उस दुष्टने क्या किया था? प्रियतम ! उस दुष्टने आकर मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे पास भोगकी याचना की । लेकिन मैं चिल्लाई और दरवाजा खोल दिया । राजाने देवीको धन्यवाद दिया। देवी ! मैं अभी उसी दुष्टके पासले आ रहा हूं। ये दुष्ट तेरे खंडमें आया उसी समय मेरी निद्रा उड़ गई थी। इस लिये मैं तेरे पास आता था। लेकिन तुम्हारा वार्तालाप कान पर पड़ जाने से में नहीं आया । उस वार्तालाप में मुझे उस दुष्ट की भूल नहीं दिखाती । इस लिये अब तो जो सत्य घटना है वही कहना । ... रानी समझ गई कि आज मेरी पोल पकड़ी गई है। इस लिये अब सत्य बोले विना चले पसा नहीं है। इस लिये रानी भूल कवूल कर के हिचकियां लेके रोने लगी। राजा ने अपनी इज्जत को वाहर से वट्टा नहीं लगे इसके लिये रानी को सान्त्वन देके शान्तं की। ......
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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