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________________ २३० प्रवचनलार कर्णिका . - - - जन्म की वधाई का आनन्द प्रदर्शित करने के लिये आ : रहे थे। सिंहपल्ली के मालिक के यहां पुत्र जन्म की वधाई का आनन्द किले न हो ? मालवाधिपति के वहां चोरी करने की योजना बंकचूल के यहां उत्पन्न हुये पुत्र जन्म से ढीलमें पड़ गई। और - एक महीना :निकल गया । उस टाइम के दरम्यान तो चंकल के साथी दो बार चोरी करके आ गये और लाखों की मिल्कते ले आये। एक मंगल प्रभातमें पचास घोडों के साथ बंकचूल . उज्जयिनी तरफ निकल गया । सिंहपल्ली से उज्जयिनी दोसौ कोश दूरथी इसलिये प्रवाल दीर्थ था । इस समय वंकल ने एक सार्थवाह के रूपमें जाने। का प्रोग्राम बनाया होने से मार्ग में आनेवाले छोटे बडे नगरों को देखते देखते जाना था। रास्ते में से थोडा थोडा माल भी खरीदना था । क्योंकि उज्जयिनी में रहनेवाले व्यापारी सर्व प्रथम बाहर का माल मांगे इस चातकी वंकचूल को खबर थी। . एक महीना का प्रवास करके पचास अश्वारोही के साथ वंकल ने उज्जयिनी में प्रवेश किया । एक गणिका (वेश्या) के यहां उतरा । और गणिका को रूबरू मिलने का विचार करने लगा। ... एक रूममें वेकचूल जाके बैठा। चारों तरफ नग्न चित्र नजर आ रहे थे। इस गणिका की प्रशंसा जवलें वंकचूल ने सुनी थी तभी से गणिका को मिलने के लिये उसने निर्णय किया था । दालियां आके कह गई कि थोडी देरमें देवी पंधारेंगी। .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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