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________________ “२०४ प्रवचनसार कर्णिका. दासियाँ वैठीं। एक अश्व पर वंकल और वाकीके चार अश्च पर उसके चार साथीदार वैठे। पांच अश्च और एक रथका यह काफला राजभवन में से विदा हुआ। राजा-रानी रो रहे थे। आखिर तो माता-पिता का हृदय अपनी संतानके प्रति खेचे विना नहीं रह सकता। पुत्र नालायक होने पर भी उसके ऊपर की ममता माता-पितामें से कभी भी कम नहीं हो सकती । एक महीना के सतत प्रवास के बाद यह काफला एक पल्लीमें जा पहुंचा। -इस पल्लीमें एक सौ जितने घर और दो सौ जितने झोंपड़े थे । वहाँ की पांथशाला में यह काफला रात्रि वास करने ठहरा । सिंहपल्ली के नामसे यह पल्ली मशहूर थी। नये आये अतिथियों को लूट लेना यही इन पल्लीवासियों का सुख्य धंधा था । मध्य रात्रिमें दश मनुष्यों का एक टोला पांथशाला में घुस आया। एकाएक आते हुए टोलाको रोकने के लिये वंकचूल अपने साथियों के साथ उल टोला पर टूठ पड़ा। दो घड़ी में तो आठ मनुष्यों को घायल करके कब्जे कर लिए। दो मनुष्य महा प्रयत्न भाग गए। कायर मनुष्यों के ऊपर हमला करके उनके मालको लूट लेने के लिए टेवाये हुये पल्लीवासियों को ये कल्पना किसी दिन नहीं आई थी कि हम्हें शेरके ऊपर संवा शेर भी मिलेगा। . . . प्रातःकाल होते ही पल्ली के तमाम नरनारी एकत्रित हो गए। पल्लीवाली समझ गये कि इस काफला के साथ वाथ भीडनेमें (लडाई करनेमें) मजा नहीं है। इसलिये उन्होंने तो निर्णय कर लिया कि इस काफला को यहीं
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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