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________________ - - - १८६ प्रवचनसार-कणिका हैं! क्या भगवान् मोक्षमें गय? हा, हा......हा शब्द को वदता वदता (वोलते-बोलते) गौतम स्वामी मूर्छित हो - के पृथ्वी ऊपर गिर गए। ब्रजघात की तरह महान दुःख .. को प्राप्त हुए गौतम स्वामीजी, कुछ चेतना को प्राप्त हुए । आँखमें से अश्रुधारा बहने लगी। दुःखी दिलसे विलाप करने लगे। हे जगत के वन्धु! कृपासिन्धु! आप महान आनन्द को पा गए। अहो ! जगत् के चक्षु ! मेरे जैसे भिक्षुक को छोड़के चले गए । अन्तिम समय तो निकट के स्नेही को पासमें वुलाना चाहिए । ये जगत का व्यवहार है। उस व्यवहार को भी आपने नहीं पाला । क्या? मुझे पासमें रक्खा होता तो बालक की तरह मैं आपके पीछे पीछे आता? हे भगवन्त ! अव मुझे गौतम कहके कौन वुलायेगा ! अव मैं किसके चरण कमलमें मस्तक झुकाके वन्दन करूँगा । अगर मुझे साथमें ले गए होते तो क्या मोक्ष का मागे सांकडा हो जाता ? अब मुझे तू कहके कौन वुलायगा। एसी अनेक विचारधारा में तल्लीन वनें गौतमस्वामी . अन्तमें समझे कि हाँ मैंने जाना। आप तो वीतराग! वीतराग को राग हो ही नहीं सकता। ये तो मेरा एक . पक्षी स्नेह था । जव तक मोहको केवल ज्ञान नहीं हो सकता और वहाँ के वहाँ रागको तिलांजली दे दी! . भावना परिवर्तित बने गौतम स्वामीको केवलज्ञान हो गया। देव और इन्द्र दौड़ आए। गौतम स्वामी के केवलज्ञान को समहोत्सव मनाया । भगवान श्री महावीरदेव के निर्वाण चले जानेसे लोग
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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