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________________ व्याख्यान-वीसवाँ.... १७९. - ..... अपने पुन्य से व्यापार में अगर धन मिल जाय: तो उस धनको धर्म में खर्च करना है। परन्तु धर्म में खर्चने के लिये धन नहीं कमाना है। .. ..... ...... कलि काल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरीश्वर जी महाराज योग शास्त्र में फरमाते हैं कि गृहस्थाश्रम में रहते गृहत्थों को धन कमाना पड़े तो न्यायनीति पूर्वक कमाना है। : शास्त्र को वांचने वाला विवेकी होना चाहिये । जो शास्त्र को वांचना नहीं आवे तो शास्त्र शस्त्र वन जाता है। तारक शास्त्र भी मारक बनता है। इसी लिये कहा है कि शास्त्र का वांचने वाला गीतार्थ और गंभीर होना चाहिये। ... "विना पैसे भी धर्म होता हैं। .. :: ...... हमारे साधुभगवंत पैसा बिना पूर्ण धर्मको आराधना करते हैं ! . ... जम्बूद्वीप, घातकी खंड और पुष्करार्ध ये ढाई द्वीप और दो समुद्रको समवाय. क्षेत्र कहते हैं । इस क्षेत्रमें से ही मोक्षमें जाया जा सकता है। ............::. : सिद्ध शिला ४५ लाख योजन की है। आठ योजन मोटी (जाडी) है किन्तु अंतमें मक्खी के पंख की तरह पतली है और स्फटिक जैसी है । सिद्ध-शिला से एक योजन दूर लोकाकाश का अग्र भाग है। वहाँ सिद्ध के 'जीव रहते हैं, | " .. .... . सर्वार्थ :सिद्ध विमान मोक्षका विसामाः (विश्राम) है। वहाँ से एक भव करके मोक्षमें जाया जाता है। .. सर्वार्थ सिद्ध विमानमें तेतीस सागरोपम का आयुष्य है। वहाँ सभी अहमिन्द्रं ही रहते हैं । वे पुष्प शय्या में सोते रहते हैं। सोते सोते तत्वचिन्तन करते रहते हैं। .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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