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________________ व्याख्यान-बींसा १७७ - - - कुवाका पानी ज्यों ज्यों वपराता है त्यों त्यों बढ़ता जाता है। इसी तरह दानेश्वरी की लक्ष्मी घटती नहीं है, बल्कि बढ़ती है। . . . . . : ..... तीर्थकर जव दीक्षा लेते हैं तव जगत के जीवों को एसा ही लगता है कि हम हार गए। सच्चा मार्ग तो - एक.दीक्षा ही है, ऐसा लगे बिना नहीं रहेगा।.... . . दीक्षा लेने के वाद: जवतक केवलज्ञान नहीं होता तव . तक तीर्थंकर भूमि पर पैरों से सुखपूर्वक वैठते नहीं हैं। . तीर्थंकरों के समान संयम कोई भी नहीं पाल. सकता है। जिनकल्पी भी नहीं पाल सकता है। ...... ' जैसे बाइयाँ घर के कचरे को हणं देती हैं उसी तरह तीर्थकर भी भोग सुख को हण देते हैं। और चले जाते हैं। वे अतुलबली होते हैं । फिर भी दीक्षा लेने के वाद . उन्हें विहार में छोटा वालक कंकर भी मारे तो भी वे कुछ भी नहीं बोलते हैं। भगवान ये सब कष्ट इस लिये सहन करते हैं कि सहन किये विना मोक्ष मिलने वाला नहीं हैं। दुख का सामना करने के लिये ही संयम लेना है। झानी पुरुष दुख के स्थानों से दूर नहीं भागते हैं। किन्तु उदीरणा के द्वारा कर्मों का चूरा करने के लिये उपद्रव स्थानों में ही जाते हैं। ..... . ... - . भगवान ऋषभदेव के हजार वर्ष के संयमकाल में प्रमादकाल तो सिर्फ २४ घंटे का ही है। . . . ... जिसे भगवान का साधु जीवन नित्य याद आता है। और एसा साधु जीवन में कव जीउंगा एसी भावना वाले तमाम साधु वन जायें तो साधु जीवन निर्मल बने विना. नहीं रहेगा।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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