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________________ व्याख्यान-सत्रहवा १४७ समय तक खूब सावधानी पूर्वक संग्रह करके रखी हुई तीक्ष्ण धारवाली छुरी उसने निकाली। हाथमें छुरी धारण करके वह विनयरत्न धीरे कदम रखते हुए उदायी राजा के पास आया और अपना काला. कृत्य करने के लिये तैयार हुआ परंतु राजाकी भव्य सुखमुद्रा देखकर क्षणभर तो विनयरल काँप उठा । फिर भी सनको अंतमें मजबूत वनाके दूसरे ही पल एक ही झटकामें हाथमें ली हुई छुरी राजा उदायी की गरदन पर चला दी। राजा के मस्तक और धड़ दोनों अलग अलग हो गये। खून की धारा वहने लगी । दुष्ट विनयरत एक पलका भी विलंब किये बिना द्वार खोल करके राजभवन के बाहर निकल गया गृहस्थपनेके अपने वतन तरफ तुरंत पहुंचजाने के लिये शीघ्र प्रवासमें वह चलने लगा। .. राजा के शरीर में से निकलती लोही की धारा आचार्य महाराज के संथारा तक पहुंच गई। आचार्य भगवन्त की कायाको लोही स्पर्श गया। प्रवाही पदार्थ कायाको स्पर्श करने से आचार्य महाराज जग गये । द्रष्टि फेंक कर देखने लगे कि राजा के शरीर में से धारावद्ध लोही ( खून ) वह रहा है। . ... दूसरी तरफ देखा तो विनयरल देखने में नहीं आया। विचक्षण आचार्य भगवन्त समझ गये कि यह कार्य दुष्ट एले विनयरत्न का ही है। इसकी लेवामें मैं भान भूल के इस दुष्ट को मैं यहां लाया । सचमुच में वड़ा अन्याय हो गया । सुवह नगरी में हाहाकार मच जायगा । लोग कहेंगे कि आचार्य महाराज ने विनयरत्न के हाथ ले राजा का खून कराया । अरे! शासन की बहुन निन्दा होगी।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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