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________________ प्रवचनसार कर्णिका - - - - को समृद्धिवंत देखकर ईर्ष्या की ज्वालामें जलते रहने की कुसंस्कृति उस समयके भारतवासियों में नहीं थी। .. - श्रेणिक राजा विचार करने लगे कि एले पुण्यशाली . शेठ के मुझे भी दर्शन करना चाहिये । दूसरे दिन मंगल प्रसातमें श्रेणिक महाराजा शालिभद्र के सेवन से पधारे । सद्रा माता और पुत्रवधूओंने श्रेणिक महाराजा को सच्चे मोतियों से सत्कार किया। भद्रा माता सविनय मगधाधिप से पूछने लगी कि हमारे जैले रंक के घर आपके पुनीत चरण कैले अलंकृत किये। श्रेणिक महाराजाने कहा कि मेरे नगरसे वसते महापुन्यशाली श्रेण्ठि शालिभद्र के दर्शन करने आया हूं। वे कहाँ हैं ? शेठानीने कहा कि वे सातवे मंजिल पर हैं । आप तीसरी मंजिल पर पधारो में उनकी वुलाती हूँ। महाराजा तीसरी मंजिल पर पधार कर एक भव्य आलन पर विराजे.। भवनकी शोभा देखकर महाराजा तो विचार में पड़ गये कि मेरे दिवानखाने की ओर राज . सभाकी सी एसी शोसा नहीं है जैसी शोभा इस अवनकी.. . है, तो सातवीं सूमि की शोभा तो कैसी होगी? एसे. विचार तरंगोंमें मग्न श्रेणिक राजा विराजमान थे। . . . . अद्रा माताने सातवीं मंजिल पर जा के अपने प्रिय पुन शालिभद्र से कहा कि हे पुत्र, अपने घर श्रेणिक महाराजा आये हैं। उन्हें तेरे दर्शन करना हैं इसलिये तू नीचे आ . . सुख के वैभव में उछरे हुए शालिभद्रजी को ये भी मालूम नहीं था कि महाराजा का मतलब क्या होता है। ... नगरके, देशके मालिक ! सत्ताधीश । वे तो महाराजा का मितलव किसी प्रकार का माल किराना । एसी समझपूर्वक
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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