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________________ A (CNMDM --- - क - व्याख्यान-सोलहवाँ अनन्त उपकारी तारक जिनेश्वर देव फरमाते हैं कि आकाश (लौकाकाश) के प्रदेश असंख्यात हैं । अपना. जीव सभी आकाशप्रदेशों में उत्पन्न हो के आया है। ___ पर भव में एक ही साथ मिलकर के एक समय में वांधा हुआ पाप वह सभीको दूसरे भव में उदय में आता है। अकस्मात्-जलरेल (बाढ) भूकम्प, ट्रेन दुर्घटना वगैरह निमित्तों के द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुये सभी जीवों को सामूहिक पाप का उदय गिना जाता है। .. सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र अष्टापद गिरि की. रक्षा का प्रयास करते थे तव अग्निकुमार के देवोने उन सभी साठ हजार हो मार डाला था। उसमें साठ हजार का पापोदय माना जाय । परन्तु तीर्थरक्षा के लिये मृत्यु पाये होने से साठ हजार सद्गति में गये। . वनस्पति को काटने के पहले विचार करो कि इस वनस्पति में मैं भी उत्पन्न होकर आया हूं। और आज में, उसे काटने की प्रवृत्ति करता हूं। इस लिये मुझे फिरसे वनस्पति में उत्पन्न होना पडेगा। एसा विचार करते करते काटो तो अल्प कर्म बंधता है। सात नय हैं। उनमें से एक को भी नहीं माने उस. का नाम मिथ्यात्व है। सातों नयको माने उसका नाम: है समकिती।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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