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________________ प्रवचनसार कणिका D - - आत्मा दो प्रकार के होते हैं :- (१) भवाभिनन्दी .. (२) आत्मानन्दी। संसार में मजा माने, पौद्गलिक वस्तु का रागी वना रहे, स्वार्थ के लिये लडाई करे और संसारी संबंधों में । विलास करे उसका नाम है-भवाभिनन्दी। .. परमार्थ का चिंतन करता हो, आत्म-जगत की खोज करनेवाला हो-अकेला आया हूं और अकेला ही जाना है जगत में कोई किसीका नहीं है एसे विचारों में मस्त हो उले-आत्मानंदी कहते हैं ।। पांच इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, आयु, मनवल, वचनबल, और कायवल इन दश प्राणों का वियोग हो उसका नाम है "मरण" । धर्म नहीं प्राप्त किये जीवों ने एसें अनन्त मरण किये हैं। . यह दुर्लभ मनुष्य भव मिला है तो मोह को यारी छोड़के धर्म की मित्रता करो । . महा नैयायिक उपाध्याय श्री यशो विजय जी महाराज साहब फरमाते हैं कि परवस्तु की इच्छा करना ये महा दुःख है । संसार की तमाम इच्छाओं को अल्प करने के लिये ही धर्म है। . · जरूरत से अधिक परिग्रह नहीं रखना चाहिये। ऐसी प्रतिज्ञा आनन्द और ' कामदेवने ली थी। इस नियम के आधार ले बारह वर्षमें सब त्याग करते हैं। . . . - आनन्द और कामदेव रातकी प्रतिभा में खड़े रहते हैं तब देवोंने परीक्षा की लेकिन चलायमान नहीं होते हैं। तब भगवान महावीर परमात्माने उनकी समवशरण में
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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