SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचनसार कणिका - - - दूं तो? राजा-रानी अलग होकर के अपने अपने शयन गृहसें चले गये। राजा खूब ही आनन्द में था। सुबह जैन साधुकी पोल-पट्टी खुली करूँगा इसलिये जैन धर्मकी .. निन्दा सुन करके रानी जैन धर्म छोड़ देशी। इस तरह आनन्द ही आनन्दमें राजा निद्रादेवी की गोद में लिपट गया। प्रभात की झालर वज उठी । मधुर गीतों का मंगल गान वातावरण में गूंज उठा। राजा जागृत हुआ, रानी सी जागृत हुई। महादेव के दर्शन करने के लिये हजारों दर्शनार्थी आ गये थे। पूजारीने आकर के महाराजा से चादी देने को विनंती की । राजाने कहा चलो, आज तो द्वार खोलने की धार्मिक क्रिया में ही करूँगा और सहादेव के दर्शन करके धन्य बनूँगा। राजा-रानी राजभवन में से बाहर आये। लोगोंने जयनाद गजा दिया । वातावरण आनन्दित बना । सबके नमस्कार झीलते झीलते राजा-रानी ठेठ मन्दिर के मुख्य द्वार के पाल आए । लोगोंने फिरसे जयनाद गजा दिया। दर्शन की उत्कंठा बढ़ने लगी। वातावरण में नीरव शान्ति फैली । महाराजा ने खूब ही प्रसन्नचित्त से मन्दिर का द्वार खोला । महादेव मंगवान की जयले वातावरण गूंज उठा । एकाएक आश्चर्य फैल गया । मन्दिर में से अलख ! अलख के गगननादी आवाज करते हुए बावाजी निकल पड़े । महात्मा को आता हुआ देखकर लोगोंने रास्ता कर दिया। उस रास्तेले महात्मा चले गये। उसी पलमें वेश्या वहार निकली। एक वन्द मंन्दिरमें से महात्मा और वेश्याको वाहर आता हुआ देख कर लोक-लागणी खूब ही दुःखी हुई । सभीको घृणा हो ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy