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________________ ७५. व्याख्यान दसवाँ... साहेव ? जरा समझ के बोलना । हां बोलने के बाद उस ... का अमल करना पड़ेगा। ... ... ... ... ... ... ... ... .. - पहले गुण स्थानक वाले में भी भद्रिकता हो सकती है। क्यों कि भद्रिकता आये विना धर्म प्राप्त कर सकता नहीं है। . . . . . . . . . . .. भाव श्रावक धर्म स्थानक में से जब घर जाय तों. उदासीन मन से जाय । और घर से धर्मस्थानक में जाय । तो हर्षोल्लास पूर्वक जाय । धर्म किया मनके उल्लास पूर्वक . करनी चाहिये । और संसारी क्रिया मनके उल्हास रहित । पने से करनी चाहिये । . - मास क्षमण अथवा सोलमथ्था जैसी बड़ी तपस्या । करनेवालों में से जो कोई देवदर्शन में भी प्रमादी बनते . हैं तो कहना पड़ेगा कि उनने तपस्या तो की मगर तपस्या " का मर्म समझे नहीं हैं. .. ..... . . . . उपशम श्रेणी वाला कसैको दवाता दवाता जाता है। इसलिये ग्यारहवें गुणस्थान में जाकर नीचे गिरता है। ... चौदपूर्वी जैसे भी कुछ जीव उपशम श्रेणी करने के वाद ग्यारहवें गुणढाण (गुणस्थान) से गिरकर निगोदपने . को प्राप्त करते हैं। जो चड़ने के वाद गिर जाते हैं उनको । फिर चढ़ने की इच्छा होती है। इसलिये नहीं चढे उनसे . तो चढके जो गिर गये वे अच्छे हैं। एक दफे उसने स्वाद चखा हो उसको स्वाद चखने का मन फिर से होता है। भगवान की कही. बहुत बातें माने, परन्तु थोड़ी न माने उसे निन्हव कहते हैं । परन्तु बहुत न माने और थोड़ी माने उसे महा निन्हव कहते हैं । ...........
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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