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________________ - - ७४ प्रवचनसार कर्णिका तुम्हें साधु-साध्वीको देखकर अधिक आनन्द आता है कि पुत्र-पुत्रिवोंको देखकर ? जो पुत्र-पुत्रियोंको देखकर आनन्द आता हो तो समझ लेना कि अभी सच्ची रीतले धर्मदशा नहीं है, सगे-सम्वधियों पर अधिक प्रेम है कि सार्मिक ऊपर ? ___ स्वयं वाचन करने से जो आनन्द आता है उसकी अपेक्षा जिनवाणी का श्रवण करने से अधिक आनन्द आता है। भापा वर्गणा के पुद्गलों के द्वारा अपन बोलते हैं। वे पुद्गल समत्र लोक में प्रसारित हो जाते हैं। . ___ अपने शरीर में से निकलते हुये पुदगलो को केमरा में पकड़ लिया जाता है जिसले अपना फोटो-प्रतिविम्ब उसमें उपस आता है यानी केमरामें खिंच जाता है। असार एसे शरीर से सार भूत धर्म का आराधन करना उसी का नाम शरीर की सार्थकता है। श्री जिनेश्वर भगवान सर्जन डाक्टर हैं। उनकी आज्ञा में विचरते साधु महात्मा कम्पाउन्डर हैं। तुम दरदी हो । भवरूपी दर्द तुम्हें लगा है। तो उस दर्द को दूर करने के लिये ही तुम हमारे पास आते हो? . भगवान के समक्ष तुम साथीया करके कहते हो कि हे भगवान, मुझे अब चार गतियों में नहीं जाना है। तीन ढगली करके कहते हो कि अब मुझे सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक चारित्र चाहिये। इस के वाद तुम सिद्ध शिला का आकार करते हो उसका मतलब है कि जहां सिद्ध के जीव रहते हैं उस · सिद्ध शिला पर मुझे जाना है। यह तुम्हारा करार है वह सच्चा है ? हां साहेव । क्या हा..
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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