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संग्रह दोनो भाषाओंमें है. इससे यह किताब गुजराती तथा हिन्दी भाषाभाषी स्त्रीपुरुषोंको उपयुक्त होवेंगा.
इस ग्रन्थ के प्रकाशनमें सद्गुणानुरागी मुनिराज श्री कर्पूरविजयजी महाराजने पालीताणासे पत्रव्यवहार के द्वारा बारबार जो सलाह दी है __ और हमारे मित्र श्रीयुत लक्ष्मण रघुनाथ भिडेजीने भाषा सुधारने में
तथा प्रूफ करेक्शनमें जो सहाय्यता दी है उस लिये उक्त दोनों सज्जनोंके हम ऋणी है. . . __ जिस प्रमाणसे द्रव्य सहाय्य हो उसी प्रमाणमें ऐसे ग्रन्थोंका कद बढाया जा सकता है. और भी संग्रह हमारे पास है, सो उचित सहाय्य मिलनेपर इसका दूसरा भाग भी प्रकाशित किया जायगा,
ग्रन्थमें जो भूल या अशुद्धि नजर आये सो कृपा करके हमको लिखना जोकि पुनरावृत्तिके समय दुरुस्त की जायगी. सवत १९९३ वीर सक्त २४६३ )
संग्राहक कार्तिक सुदी ५ (ज्ञान पचमी), शाह. शिवनाथ लुबाजी पोरवाल गुरुवार ता० १९ नवबर १९३६) ३५६ वेताळ पेठ मु० पुना सिटी.
( अनुकमाणका भृष्ट ८ के आगे का अनुसंधान निचे मुजब ),
सदबोध पद्यावली पद ६ नी अनुक्रमणिका. १ वैराग्यनु-तानमा तानमा तानमारे, मत राचो ससारना ता०१३१ २ चेती ले तु प्राणीया, आल्यो अवसर जाय . . १३२ ३ चेतन स्वारथीयो संसार, सगपण सर्व खोटारे
१३२ ४ कलदार स्वरूप पद- सुखकारा जगत सुखकारा रे १३३ ५ परनारीका त्याग करनेपर पद- पाप मत करो प्राणिया १३४. '६ सट्टाका ,, ,, -- कह सेठाणी सुणो सेठजी सट्टो थे०, १३५
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