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________________ ६. प्रास्ताविक निवेदन. Lon सूज्ञजनोंको पवित्र ज्ञानामृतपानका लाभ थोडेमें मिले इस हेतुसे अनेक मुनिराज और कविगणोने सूत्रासिद्धान्तों से सार निकाल कर __ भिन्न भिन्न भाषाओंमे ग्रन्थलेखन करते आये है और करवाते है इसी मुजब सद्गुणानुरागी मुनिराज श्री कर्पूरविजयजी महाराजने भी गुजराती __ भाषामें जैन हितोपदेश, जैन हितबोध आदि कितनेक ग्रंथ लिखे हैं. ए ग्रन्थ बहुत बरसके पेहेले म्हेसाणाके श्री जैन श्रेयस्कर मण्डल की तरफसे प्रकाशित हुए. इस मंडळने जैन हितबोध और जैन हितोपदेश भाग १ ए अन्य हिन्दी भाषामें भी मुद्रित किये. लेकिन आज ए किताब मिलते नहीं. ए पुस्तक ऐसे हैं कि जिनमें अध्यात्मिक धर्माचार विषयक तथा व्यवहारनीतिका बहुत कीमती उपदेश एक साथ सीधे साधे भाषामें पढनेको मिल सकता है. ___ इन पुस्तकों से कुछ विषय लेकर और अन्यान्य ग्रन्थ पढते हुए हमने जो टिप्पण किये थे वोभी लेकर हमने संवत् १९८८ में 'विविध विषय संग्रह भाग पेहेला' इस नामका ग्रन्थ शास्त्री टाइप और गुजराती भाषामें प्रकाशित किया था. आम जनताको यह किताब बहुत पसन्द आया लेकिन इनकीभी प्रतियाँ अब शिल्लक नहीं है. परमपूज्य सद्गुणानुरागी मुनिराज श्री कर्पूरविजयजी महाराजके साथ पत्रव्यवहार करके महाराज साहेबकी आज्ञानुसार जैन हितोपदेश भाग पेहेला और जैन हितबोध ये दो हिन्दी भाषाके ग्रन्थोंमेंसे उपयुक्त विषय लेकर हमने प्रकाशित करना शरू किया. इसमें गुजराती भाषा के विषय हो तो ग्रन्थ और भी उपयुक्त होगा ऐसा मानकर हमने जैन हितोपदेश भाग २-३ मेंसे कुछ विषय लेकर अन्यान्य अन्यामेसें ली हुई माहिती के साथ यह ग्रन्थ छपाया है. इसमें बोधकारक प्रश्नोतर तथा दृष्टान्त कथन और वचनों और पद्यो आदिका कीमती
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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