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. [ ६५ ] इति षट राग तीस रागिनी समेत समापतं । लेखनकाल–१९ वीं शती। प्रति-पत्र १ । लम्बी पंक्ति ४५+४३ । अक्षर १७ । साईज ४॥x१६ ।
(अभय जैन ग्रन्थालय)
(६) रागमाला भादि
भैरुं शिव मुख तँ भयो, धनी सुगति सुर सोय । सरद प्रात ही गाइये, जाति सु अडो होय ॥ १ ॥
मोदक छन्द घौवत सुर गृह ताको जानौ, शिव मूरति संगीत घखानौ । कंकन उरग और शशि भाल, सुर सुरि जटा गरै रुंड माल । खेत वसन नैन फुनि तीन, सिद्धि सरुप अरु महा प्रवीन ।। २ ॥
सोरठो कहो भैरवी नारि, वैराडी मधु मधु धुनी ।
सैंधवि तेहु विचारि, बगाली हू जानियौ ।। ३ ॥ विशेष-प्रथम पत्र ही उपलब्ध है । ग्रन्थ अधूरा ही प्राप्त हुआ है। लेखनकाल–१९ वीं शती। प्रति-पत्र १ (एक तरफ)। पंक्ति १३ । अक्षर ४८ । साईज १०४४।।
(अभय जैन ग्रन्थालय) (७) रागमाला । दोहा ३६ । आदि
अथ रागमाला दूहा स्याम वरन तन दुख हरन सब रागन को राइ । चवर दुरै मरदन करें, वनिता भैरों भाइ ॥१॥ पुहप माल गल छाजि हैं, राग करत दै ताल । धाम फटक सरपो तरंग भाव भैरवी वाल ॥ २॥
अन्त
वैनी लाबी स्याम बहु, बंगाला रंग सेत।। राग रागनी तीस पट, सुनि राइ कर हेत ॥ ३६ ॥