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[ ६२ ] औरंग साह महा बली, साहन फै सिरताज । करी रागमाला सर (स), ताकै भवचल राज ॥ ७९ ॥ चौरासी देस है, अरु चौरासी राग । देस देस में राग है, गावत गुनी सुभाग ॥ ८ ॥ चतुरासी जो देस है, सुन ले ताके नाम । पातसाह उस्तत कहै, गुनी जोग सुभ काम ॥ ८ ॥ संमत विकम जोत को, सतरै से पंचास । आठ वरस दुन और संग, कीनो अन्य प्रकास ॥ ८२ ॥ बुद्धवार तिथि त्रयोदशी, सुकल पख्य परधान । कहि राग माला प्रगट, मगसिर मास प्रधान ।। ८३ ।। राग की माल श्री माल धनी चुनि उच्छर फूल समो संगवासी। नाद को मेरु धरयो पट नारन कंठ कहैऽनुराग हुलासी। सत्संग विचार हजार हजार परे सुन ते रस मै बुध जोग प्रकासी।
राग संगीत के भेद को देख कै नाउ करयो तिह राग चौरासी। ८४ ॥ इति रागमाला। श्रीरस्तु । शुभं भवतु । लेखक पाठकयो । लेखनकाल–१८ वीं शती। प्रति-(१) पत्र ११ । पंक्ति १७ से १९ । अक्षर ५० से ५५ । साइज १०४४।
(महिमा भक्ति भंडार) (२) पत्र ४ । अपूर्ण ।
(हमारे संग्रह में) (९) राग विचार । पद्य ९८ । लछीराम । मादि
गुरु गनेश मन सुमरि कछु, कहौ कामिनी कंस । राग ताल मिति नाहिने, गुरु कहि गये अनन्त ॥ १॥ देव रिपिनि कीने विविध, मत संगीत विचार । लछीराम हनिवन्त मत, कहै सुमति अनुसार ।।
अन्त
धैवतु प्रह सुर रागना भरु कामोद सुनाठ ।
लछीराम ए जानि के तन मन भाणंद पाउ ॥ १७ ॥ प्रति-(१) पत्र ५ (अनूप संस्कृत लाय ब्रेरी)
(२) पत्र ९ सं० १७३२ चै० सु०७ । लि० जनार्दन । (१०) राग माला । पद्य ८५ । सागर ।