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दोहा ता कारन कीनो अलप ग्रन्थ जु मो मति मानि । सज्जन सुनि सुध कीजीयउ, जहाँ घट मात्रा जानि ॥७॥ अंचल गछपति श्री भमर, सागर सूरि सुजान । ताके पछि पाचक रतन, शेखर इमि अभिधान ॥७९॥ तिन कीनी भाषा सरस, पढ़त होत बहु मान । . प्रथम लेख सुंदर लिख्यौ, विबुध कपूर सग्यान ॥८॥ रवि शशि मंडल मेरु महि, जो लौं हुभ आकाश ।
पढे सौ तौ लं, थिर रहै, लीला लछि विलास ॥४१॥ इति श्री वाचक रत्नशेखर विरचिते रत्नव्यवहारसारे श्रीमच्छीशंकरदास प्रिये मणिव्यवहारो नामाष्टमो वर्ग:॥ ८॥
इति रत्न परीक्षा ग्रन्थ संपूर्णमिदं ॥ प्रतिपरिचय-(१) पत्र ३२ । पंक्ति १३ । अक्षर २५ से ४५ तक । साइज ११४५।
(अभय जैन ग्रन्थालय) (२) अन्यप्रति-(वृहद ज्ञान भंडार) विशेष-वर्गनाम व पद्यसंख्या-१ वन पद्य १०५, मौक्तिक १२९, माणिक्य ९०,
नीलमणि ४३, मरकत मणि ३३, उपरल ४७, नानोरत्न १८, माणिक्य ८१,
प्रारंभिक १४ । कुल पद्य संख्या ५७० । (६) रत्न परीक्षा । पद्य ७० । रामचन्द्र । आदि
प्रथमहि सुमर गनेश को, जात बाधे बुद्ध । ता पीछे रचना रचौ, रतन परिच्छा सुध ॥ १॥ रत्न दीपका ग्रन्थ में, रतन परिच्छा जानि ।
रामचन्द्र सौ समझि के, भाषा करनो आनि ॥२॥ अंत
सवैया मधुकर परीक्षा-निसा मुख ससी बुध गाइहू को काचौं लेह,
ताके बिच मनिह को मेल्हि निसो ठानिये । भा (नु उ) दे देखत ही दुद्ध लाल रंग होत, • तातै जानों सत्रुन सौं जुद्ध जीत जानिये ।