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संग कहत कंची संग कुं, जुगल मिलण कहै संग । संग नाम पापाण को, ताके अद्भुत रंग ॥ २ ॥
संग गिलोला, नाम है, अवलाखा रंग तांहि । जहां तहां कहुं होत है, जात खार के मांहि ॥ ८० ॥ नाम जराहि संग है, असमानी फोका ताहि ।। पूरव दखिण देस में, भरै घाव मिट जाय ॥ ८१॥
पचभदरा संग नाम है, लूण होत है तांह। विशेष
(ग्रन्थ अपूर्ण) लेखनकाल–१९ वीं शताब्दी । प्रति-पत्र २ । पंक्ति १६ । अक्षर ४२ ।
(अभय जैन ग्रन्थालय) (३) रत्न परीक्षा । पद्य १३६ । कृष्णदास । सं० १९०४ कार्तिक कृष्णा २ आदि
कृष्णदेव गुरु ध्यान करि, सिव सुत गौरी मनाय । संग जाति वर्णन करौ, पढ़त ज्ञान होय ताहि ।। १ ।।
अंत
चन्द्र चाप सुनि वेद ही, सम्वत उरजु जु मास ।' कृष्ण पक्ष तिथि दूज ही, भूसुर कृष्ण जु दास ॥ भूसुर कृष्ण जु दास की, मन सुख नाम हैं । आया बीकानेर ग्राम, तोसाम हैं । १३२ ।। कृती करी यह ताहि, मित्र सुन लीजिये । छंद भंग कहि होय, सुन्द कर दीजिये ।। १३३ ॥ जोहरी कृष्ण जु चंद ही, श्रावग कुल हि निवास । विक्रमपुर का वासिन, पुनि दिल्ली में वास ।।१३४ ।। जाति बोथरा नाम है, सुनो सवन दे ताय । ताही पढ़न के कारणे, मै भाषा रची बनाय ।। १३५ ।। रस्न परिच्छा ग्रन्थ ही, पढ़े सुने जो कोय । रस्न परीक्षा मुनि करे, रन सरीखा होय ।। रत्न सरीखा होय, मान नहो कीजिये । दया धर्म के बीच, मीत चित दीजिये।