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[ ५० j विशेष-प्रारंभ मे स्वास्थ्य सम्बन्धी उपयोगी शिक्षाओ के बाद कई औषध प्रयोग __ है। जनसाधारण के लिये प्रस्तुत ग्रन्थ विशेष उपयोगी है।
(अभय जैन ग्रन्थालय) (१७ ) वैद्यक सार । जोगीदास ( दास कवि ) । सं. १७६२ आश्विन शुक्ला १० । बीकानेर। आदि
वित हरण सब सुख करन, भाल विराजत चंद । सिद्ध रिद्ध जाके सदा, जय जय गवरी नंद ॥ १ ॥ प्रथम गणेश्वर पाय लग, अपने चित्त के चाय । भाषा शुभ करिकै कहूँ, वैद्यकसार बनाय ॥ २ ॥ नव कोटि मे मुकुट मन, बीकानेर शुभ थान । राज करै राजा तहाँ, नृप मन नृपति सुजान ॥ ३ ॥ जाँकै कुँवर प्रसिद्ध जग, सब गुण जान अनूप । जोरावर सिंह नाम जिह, राज सभा को रूप ॥ ४ ॥
तिन महाराज कुंधार की, उपज लखी कविराय । अपने मन उछाह सों, भाषा करी बनाय ॥ ११ ॥
संत
अथ कवि वर्णन--
धीकानेर वासी विसद, धर्म कथा जिह धाम । स्वेताम्बर लेखक सरस, नोसी जिनको नाम ।। ७२ ।। अधिपति भूप अनूप मिहि, तिनसों करि सुभभाय । दीय दुसालौ करि करै, कह्यो जु जोसीराय ॥ ७३ ॥ जिनि वह जोसीराय सुत, जानहु जोगीदास । संस्कृत भाषा भनि सुनत, भौ भारती प्रकाश ॥ ७४ ॥ जहां महाराज सुजान जय, वरसलपुर लिय आंन । छन्द प्रवन्ध कषित करि, रासौ कह्यो बखान ॥ ७५ ॥ श्री महाराज सुजान जव, धरम ललक मन आंन । वर्षासन संकल्प सौ,दीय सांसण करि दान ॥ ७६ ॥ व्यतीपात के पर्व विच, परवानो पुनि कीन । छाप आपनी आप करी, दास कविनि को दीन ॥ ७७ ॥