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[४७ ] (१२) माधव निदान भाषा आदिअथ रोग परीक्षा निदान लिख्यते ।
प्रणमेति ग्रन्थकार इयु कहेइ । रोगां का निश्चय ज्ञान होइ । जिसते सो ऐसा ग्रन्थ करो । हो क्यूं करि करहू । सिब को आदि ही नमस्कार करिये । महादेव के नाम बहुत हई । सिव नाम जो आनिधा सा प्रन्थ कार । दोह नाम महादेव का कियूं न आनि राख्या । इस ग्रन्थ को जो पढ़ाए तथा पढ़े । तिनादे कल्याण पदेनमिति ।
अंतअंत के पत्र अप्राप्य हैं। प्रति--पत्र १३३, । पंक्ति ९, । अन्तर ३०, । साइज १०४५
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (१३) माल कांगणी कल्प (गद्य) मादि अथ माल कांगणी कल्प लिख्यते ।
माल कांगणी सेर २। तेल तिल्ली का सेर २। गऊ का घृत सेर २। मधु सेर २। गऊ का मूत्र सेर ४। माटी के पात्र मध्ये सब एकत्र करके मुख मूंदी करी दीपाग्नि देणी । पहर । ७ ।
अंत-द्वादश अंत परह (पहर?) जोग कार्य सिद्धी होइ । गेहूँ घृत खाय । निश्च सिद्ध होई। खाटाखारा वजनीक । प्रति-पत्र २, पंक्ति ११, अक्षर ३०, साइज ९॥४५॥
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) १४ मूत्र परीक्षा । पद्य ३७. लक्ष्मी वल्लभ । आदि
आदि का पद्य अप्राप्य है। अंत
मूत्र परीक्षा यह कही, लच्छि वल्लभ कविराज ।
भाषा बंध सु अति सुगम, बाल बोध के काज ॥ ३७ ॥ लेखन-सं० १७५१ वर्षे कार्तिक वदि ६ दिने श्री बीकानेर मध्ये । प्रति-पत्र १,
(नवलनाथजी की बगीची)