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[ ४५ ] इति श्री निजोपाय छुटकर दवा संपूर्णम् । प्रति-गुटकाकार । पत्र १४ । पंक्ति ८ । अक्षर १४ ।
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (१०) प्राणसुख । पद्य १८७ । दरवंश हकीम। आदि
सुनिरे वैद वेद क्या बोला, उत्तमु इहि विद्या पढ़ो अमोला | वायु पित्त कफु तीनों जानौ, रोगां का घरु यही वखांनी ॥ १ ॥
यहि प्राणसुख पोथी के, ओषध सकल प्रमान ।
कधि दरवेस हकीम की, सुनीयो वैद सुजांन ॥ ८०॥ इति प्राणसुख वैद्यक चिकित्सा संपूर्ण। लेखन-सं० १८८६ चै. व. १२ देरासमाइल खांन मध्ये । प्रति-पत्र ११ । पंक्ति १५ । अक्षर ४८ करीव ।
(श्री जिन चारित्र सूरि संग्रह) (११) बालतंत्र भाषा वचनिका । दीपचन्द । आदि
-अथ बालतंत्र ग्रन्थ भाषा वचनिका बंध लिख्यते । प्रथमहि श्री गणेशजी कुं नमस्कार करिकै । शास्त्र के आद । केसे है गणेशजी । कल्याण नामा पंडित कहत है । मैं प्रथम ही ग्रन्थ के धूर गणेशजी कुं नमस्कार करता हूँ। बालतंत्र ग्रन्थ को प्रारंभ करता हूँ। मूर्ख प्राणी के ताई ज्ञान होणे के खातरै इनका प्रयोग उपचार शास्त्र के अनुसार करै । कौंण कौण से शास्त्र श्रुश्रुत, हारित, चरख, वागभट, इन शास्त्रां की शाखा की अनुसार कर सर्व एकत्र करूं हूँ । इस बाल (तंत्र ) ग्रन्थ विषै बाल चिकित्सा को अधिकार कहें है।
अंत
ग्रंधकर्ता कहै है मैने जो यह बाल चिकित्सा ग्रंथ कीया है । नाना प्रकार का ग्रंथ कू देख किया है सो ग्रन्थ कौंण कौंण से आत्रेय १, चरख २, श्रुश्रुत ३, वागभट ४, हारीत ५, जोगसत ६, सनिपात कलिका ७, बंगसेन ८, भाव प्रकाश ९, भेड १०, जोग