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(ग) वैद्यक-ग्रन्थ
(१) अतिसार निदान आदि-- अथ अतीसार को निदान कथ्यते । परिहां-भजीर्ण रसहि विकार रुख मद पानहीं।
सीतल उष्ण स्निग्ध गमन जल पानही । कृम मिथ्या भय सोक कर बहु खेद हो । उपजै यु भतिसार वखांन्यो वैद ही ॥ १ ॥
आंबा गिटक अरु विल्व पतीस, ए सभ दारू सम कर पीस ।
तंदुल जल चूरणहु खाय, रक्त सकल अतिसार मिटाइ ।। १९ ।। . इसके बाद मधुरा लक्षण, मुखवात लक्षणादि लिखे हैं। प्रति पत्र २ की अपूर्ण है । पता नहीं यह स्वतन्त्र रचिन पद्य है या किसी अन्य भापा वैद्यक ग्रन्थ से उद्धृत है । इसी प्रकार मूत्र परीक्षा का १ आदि (अपूर्ण) पत्र उपलब्ध है
घटी च्यारि निसि पाछली, रोगी कुंजु उठाइ। . रोग परीक्षा कारण, तव पेसाब कराइ ॥ १। आदि अंत की धार तजि, मध्य धार तहां लेहु ।
सेवत काच के पाच मझि, एकंत ढांकि धरेहु ।। २ ॥ ये पद्य भी किसी वैद्यक भापा ग्रन्थ से उद्धृत है या स्वतन्त्र है यह अज्ञात है ।
(अभय जैन ग्रन्थालय)