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[ ३५ ] कथा माधवानल करी, नाटक उखाहार । तृपति न मानी लाल तव, नव रस कियो विचार ॥ २ ॥ नीरसु गहे न भाव रस, रसिकु भजे रस भाव । गाड़ी चले न सलिल में, सूखि चले न नाव ।। ३ ॥
अंत
चरित राम सुग्रीव के, सोरि नन्द व्यवहार ।
इत्यादिक में जानियो, प्रिय रस के अवतार ॥ ४ ॥ इति श्री लालदास विरचिते विक्रम विलासे रसान्तरोपि समाप्तः ।
लेखन-संवत् १७२९ वर्षे शाके १५९४ प्रवर्तमाने महामांगल्यप्रद माघ मासे, शुक्लपक्षे पूर्णमास्यां तिथौ सोम्यवासरे श्री नासिक महानगरे श्री गोदावरी महातटे श्री महाराजाधिराज श्री महाराज श्री ४ अनूपसिंहजी चिरंजीवी पोथी लिखावितं । शुभं भवतु श्री मथेन सांमा लिखतं ॥ प्रति-(१)-पत्र ३१ । पंक्ति १९ अक्षर १६ । साइज ६४९॥
(२)-पत्र २७ । पंक्ति ८ । अक्षर ३५ विशेष -प्रति मे प्रथम अलसमेदनी, अनूपरसाल, योगवाशिष्ठभाषा, विक्रमविलास, सतवंती कथा, बीबी बांदी झगड़ो, कथा मोहिनी, जगन बत्तीसी, रसिक विलास ग्रन्थ है । दूसरी प्रति मे विक्रम विलास का निम्नोक्त अन्त पद्य अधिक है--
विवरण भेरस भीम के, आरण पायो लाल ॥ ३१० ॥ जहां जान अजान में, कियो कछु अविचारि ।
तहा कृपा करि सोधियो, सज्जन सबै विचारि ॥ ३१९ ।। इति लाल कवि विरचित विक्रम विलासे रसान्तर रस वर्णन समाप्त । श्लोक ५६१
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (२९) वैद्य विरहिणि प्रबंध । दोहा ७८ । उदैराज । सं० १७७२ से पूर्व
आदि
एकन दिन व्रज वासिनी, दिल में दई उहार । हों दुखहारी वैद पै, जाइ दिखाऊं नारि ॥ १ ॥ की विरहिन जिय सोच मैं, धर अपनी जिय आस । रिगत पान क्यों कर दनै, गयो वैद पै पास ॥ २ ॥