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राष्ट्रीय उत्साह का अक्षय स्रोत होगी, भारतीय जीवन और संस्कृति के ऐक्य को स्थापित करेंगी, और हिन्दू जाति के राष्ट्रीय भविष्य को व्यक्त करेंगी । इसमें सन्देह नहीं।
उदयपुर विद्यापीठ ने राजस्थान मे हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज' का प्रथम भाग सन् १९४२ में प्रकाशित किया, जिसमें १७५ हिन्दी ग्रन्थों का उल्लेख है और साथ ही संक्षिप्त टिप्पणियाँ भी हैं। अब इसका यह दूसरा भाग भी प्रकाशित हो रहा है । इसमें १८३ हस्तलिखित अज्ञात हिन्दी ग्रन्थों का विवरण है, जिनमें कोष, काव्य, वैद्यक, रत्न-परीक्षा, संगीत, नाटक, इतिहास, कथा नगरवर्णन, शकुन, सामुद्रिक
आदि विभिन्न विषयों के ग्रन्थ हैं, जो १०२ कवियों द्वारा रचित हैं । ये ग्रन्थ कई संग्रहालयो से प्राप्त हुए हैं, और प्रायः १७ वीं से १९ वीं शताब्दि तक के हैं। इनका सम्पादन-कार्य मेरे परम मित्र श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा द्वारा हुआ है । नाहटाजी ने जैन-साहित्य-क्षेत्र में सुख्याति प्राप्त की है और वे अपने अनुसन्धान कार्य को समय-समय पर पत्रों में प्रगट करते रहे हैं।
श्रीयुत नाहटाजी ने राजस्थान के हस्त-लिखित ग्रन्थों की अन्वेषणा और संग्रह में अपना बहुमूल्य समय और शक्ति का व्यय किया है, जिसके लिये हिन्दी साहित्य-प्रेमी उनके आभारी हैं।
प्राचीन साहित्य शोध-संस्थान, उदयपुर सम्वत् १९९८ वि० में स्थापित हुआ था और इतने अल्पकाल में ही उसने आशातीत सफलता प्राप्त की है। इस संस्था के संचालक न केवल विद्वान् ही हैं, वरन् कर्मठ भी हैं। सबसे अधिक विशेषता की बात तो यह है कि अच्छी से अच्छी सामग्री का ये बहुत ही अल्प व्यय से निर्माण करते हैं, जिनसे इनकी आश्चर्यजनक मितव्ययिता प्रगट होती है । अतः हम श्री जनार्दनरायजी नागर और श्री पुरुषोत्तमजी मेनारिया तथा अन्य कार्यकर्ताओं को जितना धन्यवाद दें थोड़ा है।
अन्त में मुझे यही कहना है कि भारतीय हस्तलिखित सामग्री के परिचय के लिये ऐसी प्रन्य-सूचियों की नितान्त आवश्यकता है।
कएकता
छोटेलाल जैन
माधिन शुष्ठा सं० २००१ वि०