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प्राक्कथन
राजस्थान ने भारत के इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण भाग लिया, और यह श्रेय , ' भारत के अन्य किसी भी भू-खण्ड को नहीं प्राप्त हुआ । बारहवीं शताब्दी के भी । पूर्व से लेकर मुगलों के पतन तक राजस्थान बराबर मुसलमानो के आक्रमणों का प्रति
रोध करता रहा, और उनसे निरन्तर संघर्षरत रहा । इसका फल यह हुआ कि जब ___ अंग्रेज़ मुग़लों के उत्तराधिकारी बने, तो राजस्थान की एक अंगुल भूमि भी मुग़लों के '
अधिकार में न थी । यह बात गौरव के साथ कहनी पड़ती है कि भारत का कोई भी अन्य प्रान्त इतने दीर्घकाल तक अविरत रूप से युद्धरत न रहा । इस भीषण संघर्ष काल के उत्थान-पतन में राजस्थान को कितना निस्वार्थ त्याग करना पड़ा होगा, कितना लोमहर्षक शौर्य प्रदर्शित करना पड़ा होगा, छः सौ वर्ष तक स्वतंत्रता की । अजस्र ज्वाला जाग्रत रखने के लिये कितने ईंधन की आवश्यकता हुई होगी, स्वतंत्रता .
के ध्येय को प्राप्त करने के लिये उसका कितना अटल निश्चय और अध्यवसाय होगा, । स्वतंत्रता संग्राम के भारवहन की शक्ति कितने गम्भीर और अक्षय देश-प्रेम से प्राप्त
की गई होगी, उसकी विचारधारा, भावना, सफलता पिछली दस शताब्दियो में कैसी रही होगी ? इन सब बातों का मार्मिक दिग्दर्शन राजस्थान के साहित्य में ही प्राप्त हो सकता है।
राजस्थान की भाव-व्यंजना हिन्दी और राजस्थानी भाषा में हुई है। महान् हिन्दू जाति की संस्कृति और सभ्यता के द्योतक इस साहित्य को भावी सन्तति के , हितार्थ राजस्थान ने सुरक्षित रक्खा है ।
अब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त करली है, और यह उपयुक्त समय है कि भारत की वीर-भावना और उत्साह नष्ट न हो, जिससे यह देश विश्व में अन्याय और दुराचार का विरोध और दमन करने में समर्थ हो सके । हमारी वीरता का पुनर्जागरण प्राचीन साहित्य के अध्ययन से किया जा सकता है।
राजस्थान मे हस्तलिखित ग्रन्थो की अपार निधि है । कर्नल टॉड, राजा राजे। न्द्रलाल मित्र, महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री, डॉ० वूलर, भण्डारकर, टेसीटरी | आदि महानुभावो ने पुरातन हस्तलिखित ग्रन्थों की अन्वेषणा का सराहनीय कार्य किया है, परन्तु अधिकांश भाग तो अभी तक अनेक्षित ही है । ये हस्तलिखित प्रतियां हमारे विचार-क्षेत्र को विस्तृत करेंगी, जीवन को अधिक उन्नत बनायेगी