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[२५] माथें मार मरकत मनि के मपूख, किधों धेरै चंद कौ तिमिर, परवार हैं। लामै लामैं जामैं जोति लता के वितान किधौं, किधौं स्यामवरन छवीले छूटे वार हैं ॥ १ ॥ ' , भंत-. . वीजुरी ताक, किधौं रतन सलाक किधौं, कोमल परम किधौं प्रीतिलता पी को है। रूप रस मंजरी कि मंजुल चपक दाम, किधौं कामदेव के अमर मूरि जी की है। चन्द्रकला सकलक मालिन कमल माल, जाके आगे लागति प्रदीप जोति फीकी है। दूजी सुर नर नाग पुरन बिरची रची, जैसी नखसिख अग राधिकाजू नीकी है ॥ ३० ॥
लेखनकाल–१८ वीं शताब्दी । प्रति-पत्र ३ । पंक्ति १६ से १८ । अक्षर ६६ से ४० । साइज ९४४
(श्री जिन चारित्र सूरि संग्रह) (१५) प्रेममंजरी । पद्य ९७ । प्रेम । सं० १७४० चैत्र सुदी १० सोमवार आदि- . ___मन वच करूं प्रणाम, प्रथमहि गुरु गोविन्द कुँ।
पूजै मन की काम, जिनकी कृपा सुदृष्टि से ।। १ ।। भंत
. सतरैसे , चालोतरा, चैत्र मास उजियार ।
अटकनि अटकहि लिख चुके, तिथि दसमी , शिववार ।। लेखन-संवत १७५४ अनुपसिह राज्ये कुंवर सरुपसिंह.चिरंजीयात् महाराज कुंवर आणंदसिहजी भाणेज जोरावरसिह सीसोदिया हजूर, मथेण राखेचा लि० आदणी गढे। प्रति-पत्र १४ ॐ
(खरतर आचार्य शाखा चुन्नी-भडार, जैसलमेर) (१६) भाषा कवि रस मंजरी । पद्य । १०७ । मान आदि
- ' सकल कलानिधि वादि गज, पंचानन परधान । , , -, श्री शिवनिधान पाठक चरण, प्रणमि वदे मुनि मान ॥ १ ॥
नव अंकुर जोवन भई, लाल मनोहर होइ ।
कोपि सरल भूपण ग्रहै, चेष्टा मुग्धा सोइ ॥ २ ॥ अंत
नारि नारि सबको कहै, किडं नाइकासु होइ ।
निज गुण मनि मति रीति (ध) रि, मान ग्रन्थ अवलोइ ॥ ११७ ॥ इति भाषा कवि रसं मंजरी नायका ८, नायक ४ दूत ४ दूती १७ भेदाः समाप्ताः ।