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[ २४ ] विनुहि समझ वर्णन करयो, लघु दीरध सम साध । श्री वल्लभकुल को दास गनि, छमहु सु कवि अपराध ॥ ६२ ॥ श्री वल्लभ प्रभु सरन है, ज्ञान कयो सच पाय ।
घनस्याम अच्छर सबै, पीनो भव जदुराय ॥ ६३ ।। इति नखसिख वर्णन संपूर्ण।
लेखनकाल-सं० १८२८ माववदी १४ दिने वा० कुशलभक्ति गणी लिखतन सोचभद्रामध्ये । प्रति-गुटकाकार । पत्र ६ । क्ति १९ । अतर ३८ । माइज ९४५।।
(अभय जैन ग्रन्थालय) (१३) नखसिख। आदिअथ नखसिख वर्णनम्
रसदायिनी दायिनी सरस, परस समोह सयान । विमल वदन वाणी विनय, नमन निरंतर दान ॥ १॥ रसिकनि हेतु सिंगार रस, नख सिख अंग विचार ।। निरुपम रुचि नव नागरी, ताके कहत सिंगार || २ ॥
अथांत्रिवर्णनम् कमल कुलीन किधु कूरम सुलीन जर जोर गति नीर निधि काम करि ठए हि । गति के करीश किधु मोहन मृणाल दल सायक कह पांचउ पुन्य पुरन के नए हि । पदमा के पीन नवनीत सुं सुधारे ढारे अमल अमोल छवि छाहेर रस दए हि । किधुपद युग नव तरुनी के राजतहि वाजने नूपुर गज गाह धरि लएहि ।। १॥
अंतपत्र ३ के बाद पत्र नहीं मिलने से ग्रन्थ अधूरा रह गया है। लेखनकाल–१८ वी शताब्दी का पूर्वार्द्ध प्रति–पत्र ३ । पंक्ति १३ से १४ । अक्षर ५० से ५७ । साइज १०॥४४॥
(अभय जैन ग्रन्थालय) (१४) नखशिख । सवैये ३० ।
आदिजीवन सरोवर के कोमल सिवाल सूल, काम तंतु नूल मखनूल कैपे तार हैं । पंच सर मिधुर के स्याह और किधौ मौर किवा सिरि सहज सिंगार रस सार हैं ।