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तिन की आज्ञा से भयो, कवि के चित्त हुलास । चतुरदास छत्री वहल, वरन्यो चित्र विलास ।। ७ ।। संवत् सत्रहसे वरष, बीते भधिक छतीस।। कार्तिक सुदि नवमी सु तिथ, वार चारु दिनईस ॥ ८ ॥ चौगत्ता को राज । राजत आदि जुगादिजग,..... । तिनके कुल सिरताज, अवरंग साह महाबली ॥९॥ तिनके सहर बड़े बड़े, अपनी अपनी ठौर । तिन सब में सवविध अधिक, नागर नगर लाहोर ॥ १० ॥
चित्र प्रकार अनंत गति, कहि भए कविराइ । कषि अमृत द्वे विध रचै, सभरन भरन बनाइ ।। १५ ।।
अत
चित्रजात अभरन भरे चित्र की वृत्त
कछु, वरनी अब, कहि
अमृतराइ । चतुरंग बनाइ ॥ १३१ ॥
इति श्री चित्रविलास ग्रन्थ अभरन, अमृतराय भट्ट कृत संपूर्णम् । लेखनकाल-१८ वीं शताब्दी । प्रति-पत्र ६ । पंक्ति १७ । अक्षर ४५ से ५०। विशेष-इसके आगे चित्र भरे वृत्त होने चाहिए थे पर वह खंड इसमे नही है।
कर्ता अमृतराइ भट्ट प्रति मे लिखा है पर प्रारंभ से चतुर्दास क्षत्री कर्ता ज्ञात होता है।
__(जयचन्द्रजी भंडार) (९) दंपतिरंग । पद्य ७३ । लछीराम । सं० १७०९ से पूर्व । आदि
अथ दंपतिरंग लिख्यते ।
दोहा करि प्रनाम मन वचन क्रम, गहि कविता को व्योहारु । प्रकृति पुरिष धरनन करूं, भधमोचन सुख सारु ।। १ ।। रसिक भगत कारन सदा, धरत अलख अवतार । काम्हकुंधर व नीर वन, प्रगट भये संसार ॥ २ ॥ जिहिं विधि नाइक नाइका, वरनै रिपिनि बनाइ । छीराम तिहि विधि कहत, सो कवियन की सिख पाइ ।। ३ ॥