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[ १७ ] संवत सतरेसै चौपना, ग्रन्थ जन्म जग जानि । अगहिन सुदि का द्वैज यह, आदितवार बखानि ।। ४७ ।।
यह अनूप सिगार रस, सुनियो कहूँ सुनाइ ।
अछिर चूक्यो होइ जो, लीजो सुकवि बनाइ ॥ इति श्री महाराजाधिराज महाराज श्रीमदनूपसिंह देवस्थाज्ञा पांडे अभैराम विरचिते अनूप शृंगारे नायकावर्णनम् ।
लेखनकाल–१८ वीं शताब्दी। प्रति-गुटकाकार । पत्र ९५ । पंक्ति २१ । अक्षर १५ । साइज ६४१०
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (४) अलस मेदनी । पद्य । ११५, नंदराम । अनूपसिंह कारित ।
आदि
वन्दन करि उर ध्यान धरि, धाम जलद अभिराम । अलसमेदिनी सरस रस, करत सुकवि नंदराम ॥ १ ॥ विक्कमपुर नायक भये, रायसिह नर राज । एक मोज अगनित दये, जिन माते गजराज ॥ २ ॥ सूरसिह तिनके भये; मनो दूसरे सूर । जिनके तीछन तेज ते, दुरयो तिमिर सव दूर ॥ ३ ॥ बाके वांके अरिन के, गढ़ तोरे वर जोरि । कर्णसिंघ तिनके तनय, नय कोविद सिरमोरि ॥ ४ ॥ दान दया अरु जुद्ध यह, तीन भांति रस वीर । सो जान्यो नृप कर्ण अरु, भये भक्ति रस धीर ।। ५ ॥ चारि पुत्र नृप कण के, जेठे राव अनूप । तेग त्याग जीते जिनहु, सब देसन के भूप ॥ ६ ॥ विकमपुर बैठे तखत, करि जन मन आनंद । सुथिर राज तो लौं करौं, जौं लगि धरनी चंद ।। ७ ॥ मोजनि सों दारिद हरत, फोजनि रिपु कुल मूल । नन्दराम जाके सदा, हर धरिनी अनुकूल ॥ ८ ॥ नृप अनूप गुण रतन को, जलनिधि ज्यों आधार । तत्र गुनी सब देस के, सेवत हैं दरवार ॥ ९ ॥ नृप अनूप के हुकम ते, कोविद कवि नन्दराम । रस मन्थन को सार ले, करत ग्रन्ध अभिराम ।। १० ।।