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ज्ञान अनूप अनूप गुण, भाग अनूप सरूप । दाम अनूप अनूप खग, राजे राज अनूप ॥ ४ ॥ ता हित चित करिफै रच्यो, अन्य अनूप रसाल । कवि कोकिक कुल सुख सदन, सरस मधुर सुविशाल ॥ ५ ॥
अंत--
संवत सत्तरैले अठइसे आसु सुदी दसमि कुज दीसें ।
श्री बीकापुर नगर सुहावा । तहां ग्रन्थ पूरणता पावा ॥ ३५ ॥ इति श्रीमन्महाराजा श्रीअनूपसिह विरचिते श्रीअनूपरसाले तृतीयः स्तवकः संपूर्णः। लेग्वनकाल-१८ वीं शताब्दी। प्रति-गुटकाकार । पत्र १३ । पंक्ति १७ । अक्षर ११ । साइज ६+९।। विशेष -प्रथम स्तवक पद्य ६१, नायिका वर्णन; द्वितीय स्तवक पद्य २०, नायक
वर्णन; तृतीय स्तवक पद्य ३५, अलंकार वर्णन । प्रति की प्रारंभिक सूची मे इसका कर्ता 'मथेन उदैचन्द कृत' लिखा है ।
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (३) अनूप श्रृंगार । अभयराम सनाढ्य । सं० १७५४ अगहने शुक्ला २
रविवार। आदि
गिरजासुत को समरिले, एक रदन मुख सोइ । प्रगट बुद्धि कवि को दई, भाषा कृत गुण होइ ॥ १ ॥
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ब्रह्मा ते प्रगटित भये, भारद्वाज रिपराज । जिनके कवि-कुल में तहां, कोविद के सिरताज ।। ४२ ।। खांभ पदारथ चंद ये, जिन के केसवदास । मेरसाहि सब विधि भन्टे, भाषा चतुर निवास ।। ४३ ॥ अभैराम जिनकै भये, सब कवि ताके दास । रणथंभोर गढ़ की तनी, गांव वैहरना वास ॥ ४५ ॥ जाति सनावढ गोति करैया, अभैनाम हरि दीनों। जासो कृपा करि महाराजा, जब गिरथ यह कोनो ॥ ४५ ॥ सुनो कान बाचे यथा, दुख को काटणहार । नांव धों या अन्य को, यह अनृप शृङ्गार ।। ४६ ॥ कपा करि महाराज ने, बकस्यो बहुत बनाय । रोग हरै सब दुग्न गयो, नामु दियो कविराय ।। ४७ ॥