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[ १४ ] (७) वचनविनाद । पद्म १२५ । आनन्दराम कायस्थ । सं० १६७९ लेखन | आदिपिगल भूपण दृषण कविन की जाति वर्णन् ।
राम सुमिरि गुरु सुमिरि करी, सुमिरि सवद अभिराम ।
रुचिर वचन रचना रचौ, कवि जन पूरण काम ॥ १ ॥ गुरु नुति दोहायुग्म ।
नमो कमल दल जमल पग, श्री तुलसी गुरु नाम । प्रगट जगत जानत सकल, जहां तुलसी तहां राम ।। २ ।। कासी वासी जगतगुरु, अविनासी नसलीन । हरि दासन दरसत सदा, जल समीप ज्यो मीन ।। ३ ।। अद्भुत वरननि वरनिका, करि करननि चित्तु लाइ । वरन वरन के भेद सब, वरनो प्रगट बनाइ ।। ४ ।। कवि कवित्त वरनत सकल, समुझति विरला लोइ ।।
भूपन गन दूपन लखे, निदू पन तब होइ ।। ५ ॥ अंत
ए भूपन दूपन समुनि, रचै जु कविजन छंद । ताहि पढ़त अति सुख बढ़त, श्रवन सुनत आनंद ।। १२४ ।। जब स्लग स्वर वसुधा सुधा, उदधि संगपति चंद ।
नव लगि अविचल ह्र रहो, वचनविनोद अनंद ।। १२५ ।। इति आनंदराय कायस्थ भटनागर हिमारि कृत वचन-विनोद समाप्त । लेखन-सं० १६७९ वर्प आसु सुदि ४ सनी लिखतं नागोर मध्ये तेजाकेन स्वाधीत्य । प्रति-पत्र ६ । पंक्ति १३ से १५ । अक्षर ४ । साइज़ ११४५ उदाहरण मे कइ दोहे शाहमहमद के रचित है
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (८) वृत्तिबोध । स्वरूपदास । सं० १८९८ माघ कृष्णा १ । सिवापुर । आदि
वृत्ति सब्द की छन्द की, तालवृत्ति जुन लोन । सुमगि जक कृन रचत हु, सुगम अन्य नवीन ।। १ ।। नृत्ति समुझ वो कठिन है, सजन देखहु सोध ।
म्वरूपदास विरचत सुगम, वाल पढ़े हुय बोध ।। २ ।। ऑन
संमत अष्टादस शतक, और अठाण मान ।
माघ कृष्ण पडिया भयो, अन्य मिवापुर थान ।। प्रनि-गुटकाकार।
• ( कविराज मुखतानजी चारण के संग्रह में )