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(ख ) छंद ग्रन्थ (१) छंद मालिका । पद्य १९४ । हेमसागर । सं० १७०६ हंसपुरी ।
आदि
अलख लख्यौ काहु' न परै, सब विधि करन प्रबीन । हेम सुमति वंदित चरन, घट घट अतर लीन ॥ १ ॥
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कल्याणसागर गुरु मुनिराज वंदो । नामे करीहु भवसागर मान फंदो । गच्छाधिगज विधिपक्ष सरूप धारी । सोहें सदा विविध मार्ग परूपकारी ।। । ।
दोहा सुरत विंदर के निकट, नगर हंसपुर एक । लघु साजने तहां वमै, श्रावक वह सुविवेक ॥ ५॥ राखे पूजि चौमास तहि, सूरीश्वर कल्याण । सतरसे छीढोत्तरै, प्रगट्यो सुजश महान ॥ ६ ॥ हेम सुफवि चोमास में, छंद मालिका कीन । भादों वदि नौमी सरस, भाषा कवि हित लीन ॥ ७ ॥
अंत
सवत सत्तरसे ही वरप, पट ऊपरि जानो। हंसपुरी चोमासि, सूरि कल्याण बखानो । शांतिनाथ सुपसाय करी, छंदन की माला । सुकबि कट अति सोभ, सुगन सुभ वान विशाला । छंद जू इसी मुनि कहें, हेम सुकवि आनंद धरी । साह कूआ परवोध कुं, छंदमालिका में करी ॥ ५ ॥
इति उप्पय
१.-पाठान्नर-परत न कहूं ।