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मान के नाम
दप्पंक मद बदीदास
अहंकार, मान गर्भ मति छोह भरि । अधार, माननि को अभिमान सुभ ।। ३ ।।
अंत, जुगल के नाम
है जुग दहूँ जमल बीय, मिथुन अरु बिव उभै ।
नितही कीसोर जुगल, समरन बद्रीदास के ।। ११३ ॥ इति श्रीमानमंजरी संपूर्ण ॥
ले०-संवत् १७२५ वर्ष वैशाख वदि १२ दिने श्री जयतारिणी मध्ये लि० पं० श्री यशोलाभ गणिना वाच्यमाना चिर नंद्यात् ।
प्रति-पत्र १० । पंक्ति १५ । अक्षर ४० । साइज ९॥+४। । अक्षर सुन्दर हैं। किनारे से पत्र उदई द्वारा भक्षित होने से कुछ पाठ खंडित हो गया है।
(अभय जैन ग्रन्थालय)
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